नौकरानी की जवानी उतारदी

मंजरी हमारे घर मैं काम करती थी। एक भोला सा बचपना था उसमे, पर उसका भरा जिस्म कुछ और ही बयां करता था। मैं शायद उसे पाना चाहता था, पर मैं अकेला नही था।

बड़ी नटखट और चुलबुली सी लड़की मंजरी उस समय करीब इक्कीस या बाइस साल की होगी। भरी जवानी उसके कपड़ों में से जैसे छलक रही थी। वैसे भी उनकी जमात में छोटे ब्लाउज और छोटा घाघरा ही पहनते थे। शायद वह कबायली जाती की थी। कानों में बाली, नाक में नथनी, आँख में काजल और हाथ और पाँव के नाखुन लाल रंग से रँगे, मंजरी साक्षात रति की प्रतिकृति लगती थी। ऐसे हो ही नहीं सकता की मंजरी को देखते ही, कोई भी मर्द का मन और लण्ड मचल ने न लगे। उसकी भौंहें गाढ़ी और नजर तीखी थी।

उसके उरोज इतने उभरे हुए थे की उनको उस धागों से कारीगिरी भरी और आयने के छोटे छोटे गोल गोल टुकड़ों को अलग अलग भड़काऊ रंगीले कपड़ों में भरत काम से शुशोभित चोली में समाना लगभग नामुमकिन था। उसके लाल पंखुड़ियों जैसे होठों को लिपस्टिक की जरुरत ही नहीं थी। वह जब चलती थी तो पिछेसे उसकी गांड ऐसे थिरकती थी की देखने वाले मर्दों का सोया हुआ लण्ड भी खड़ा हो जाए। हमारे घर में वह बर्तन, झाड़ू पोछा का काम करती थी।

वह बर्तन साफ़ करने अपना घाघरा अपनी टांगों पे चढ़ा कर जब बैठती थी तो वह एक देखने वाला द्रश्य होता था। मैं उस समय स्कूल में पढ़ता था। मैं अक्सर कई बार उसे बर्तन माँजते हुए देखता रहता था और मन ही मन बड़ा उत्तेजित होता था।

जब मैं उसे लोलुपता भरी नजरों से देखता था तो वह भी मुझे शरारत भरी नजरों से देख कर मुस्कुराती रहती थी। मैं अकेला ही नहीं था जो मंजरी के बर्तन साफ़ करने के समय उसकी जाँघों को देखने का शौक़ीन था। एक और शख्श भी उसका दीवाना था। उसका नाम था राकेश मिश्रा। सब उसे राकेश के नामसे बुलाते थे। हमारी कोठीमें वह पाइप से पानी भरने लिए आता था। वह यूपी का भैया था और हॉस्पिटल में वह वार्ड बॉय का काम करता था।

हम एक छोटे से शहर में रहते थे। मेरे पिताजी एक डॉक्टर थे। हमें हॉस्पिटल की और से रहनेके लिए घर मिला था जिसमें पानी का नल नहीं था। हॉस्पिटल के प्रांगण में एक छोटा सा बगीचा था। उसमें एक नल था। हमारे घरमें एक बड़ी टंकी थी जिसमें रोज सुबह राकेश एक लम्बे पाइप से उस नल से पानी भर जाता था। उसी में से रोज हम पानी का इस्तेमाल करते थे। naukrani ki alhad jawani

पता नहीं क्यों, पर मंजरी भी शायद मुझे पसंद करती थी। मैं उससे छोटा था। वह मुझे छोटे भैया कह कर बुलाती थी। खास तौर से जब माँ कहीं बाहर गयी होती थी और घरमें मैं अकेला होता था तो झाड़ू लगाते हुए अवसर मिलता था तब वह मेरे कमरे में आती थी वह मेरे पास आकर अपनी मन की बातें करती रहती थी। शायद इस लिए क्यूंकि मैं उसकी बातों को बड़े ध्यान से सुनता था और बिच बिच में अपने सुझाव या अपनी सहमति दर्शाता था। इसी लिए शायद वह मुझे भी खुश रखना चाहती थी।

मैं उससे उम्र में छोटा था। उसका और मेरा शारीरिक सम्बन्ध उन दिनों होना संभव नहीं था फिर भी वह थोड़े समय के लिए ही सही, मेरे पास आकर कुछ न कुछ बातें जरूर करती थी। और मैं जब कुर्सी या पलंग पर से पाँव लटका कर बैठता था तो वह मेरे पास आकर निचे बैठ कर मेरे पाँव पर थोड़ी देर के लिए अपना हाथ फिरा देती थी जिससे मेरे मनमें एक अजीब सा रोमांच होता था और मेरे पाँव के बिच मेरा लण्ड फड़फड़ाने लगता था। पर मैं उस समय अपनी यह उत्तेजना को समझ नहीं पाता था। naukrani ki alhad jawani

अक्सर राकेश सुबह करीब साढ़े नव बजे आता था। उसी समय मंजरी भी झाड़ू, पोछा, बर्तन करने आती थी। मैं देखता था की राकेश मंजरी को देख कर मचल जाता था। कई बार मेरी माँ के इधर उधर होने पर वह मंजरी को छूने की कोशिश करता रहता था। पर मंजरी भी बड़ी अल्हड थी। वह उसके चंगुल में कहाँ आती? वह हँस कर राकेश को अंगूठा दिखाकर भाग जाती थी। मंजरी की हँसी साफ़ दिखा रही थी की वह राकेश को दाना डाल रही थी। घर में सब लोगों के होते हुए राकेश भी और कुछ कर नहीं पाता था।

एक दिन माँ पूजा के रूम में थी। माँ को पूजा करने में करीब आधा घंटा लगता था। राकेश को यह पता था। मंजरी घर के सारे कमरे में झाड़ू लगा रही थी। जैसे ही राकेश पाइप लेकर आया की मंजरी ने मुझसे बोला, “देखो ना छोटे भैया, आजकल के जवानों के पास अपना तो कुछ है नहीं तो लोगों को पाइप दिखा कर ही उकसाते रहते हैं।” ऐसा कह कर वह हँसते हुए भाग कर पूजा के कमरे में झाड़ू लगाने के बहाने माँ के पास चली गयी। naukrani ki alhad jawani

वह राकेश को छेड़ रही थी। थोड़ी देर के बाद मंजरी जब झाड़ू लगाकर माँ के कमरे से बाहर आयी तो राकेश अपना काम कर रहा था। जब राकेश ने उसे देखा तो राकेश फुर्ती से मंजरी के पास गया और उसको अपनी बाहों में जकड लिया। मंजरी राकेश के चँगुल में से छूटने के लिए तड़फड़ाने लगी, पर उसकी एक भी न चली।

तब उसने जोर से माँ के नाम की आवाज लगाई। राकेश ने तुरंत उसे छोड़ दिया। जैसे ही मंजरी भाग निकली तो राकेश ने कहा, :आज तो तू माँ का नाम लेकर भाग रही है, पर देखना आगे मैं तुझे दिखाता हूँ की मुझे पाइप से काम नहीं चलाना पड़ता। मेरे पास अपना खुद का भी मोटा सा पाइप है, जिसका तू भी आनंद ले सकती है।” naukrani ki alhad jawani

मंजरी उससे दूर रहते हुए बोली, “हट झूठे, बड़े देखें है आजकल के जवान।” और फिर फुर्ती से घर के बाहर चली गयी।

मैं राकेश को देखता रहा। राकेश ने कुछ खिसियाने स्वर में कहा, “भैया यह नचनियां मुझ पर डोरे डाल तो रही है, पर फंसने से डरती है। साली जायेगी कहाँ? एक न एक दिन तो फंसेगी ही। ”

खैर उसके बाद कुछ दिनों तक राकेश छुट्टी पर चला गया। मंजरी आती थी और मैं देख रहा था की उसकी आँखें राकेश को ढूंढती रहती थी। दो दिन के बाद जब मैंने देखा की वह राकेश को ढूंढ तो रही थी पर बेबसी में किसी को पूछ ने की हिम्मत जुटा नहीं पा रही थी। मैंने तब चुपचाप मंजरी के पास जा कर कहा, “राकेश छुट्टी पर गया है। उसके दादा जी का स्वर्गवास हो गया है। एक हफ्ते के बाद आएगा।” naukrani ki alhad jawani

तब वह अंगूठा दिखाती ठुमका मारती हुई बोली, “उसको ढूंढेगी मेरी जुत्ती। मुझे उससे क्या?”

मैं जान गया की वह सब तो दिखावा था। वास्तव में तो मंजरी का दिल उस छोरे से लग गया था और उसका बदन राकेश को पाने के लिए अंदर ही अंदर तड़प रहा था।

करीब दस दिन के बाद जब राकेश वापस आया और घरमें पाइप लेकर आया तो मंजरी को देख कर बोला, “याद कर रही थीं न मुझे? बेचैन हो रही थीं न मेरे बगैर?”

मंजरी अंदर से तो बहुत खुश लग रही थी, पर बाहर से गुस्सा दिखाती हुई बोली, “कोई आये या कोई जाए अपनी बला से। मुझे क्या पड़ी है? मझे बता कर कोई थोड़े ही न जाता है?” बात बात में मंजरी ने राकेश को बता ही दिया की उसके न बता ने से मंजरी नाराज थी। naukrani ki alhad jawani

खैर राकेश के आते ही वही कहानी फिर से शुरू हो गयी। राकेश मौक़ा ढूंढता रहता था, मंजरी को छूने का या उसे पकड़ने का, और मंजरी बार बार उसे चकमा दे कर भाग जाती थी।

जब राकेश आता और मंजरी को घाघरा ऊपर चढ़ाये हुए बर्तन मांजते हुए देखता तो वह उसे आँख मारता और सिटी बजा कर मंजरी को इशारा करता रहता था। मंजरी भी मुंह मटका कर मुस्कुरा कर तिरछी नजर से उसके इशारे का जवाब देती थी। हररोज मैं मेरे कमरे की खिड़की में से मंजरी और राकेश की यह इशारों इशारों वाली शरारत भरी हरकतें देखता रहता था। उस समय मुझे सेक्स के बारें में कुछ ज्यादा पता तो नहीं था पर मैं समझ गया था की उन दोनों के बिच में कुछ न कुछ खिचड़ी पक रही थी। मैं मन ही मन बड़ा उत्सुक रहता था यह जानने के लिए की आगे क्या होगा। naukrani ki alhad jawani

कुछ अर्से के बाद मुझे भी मंजरी की और थोड़ा शारीरिक आकर्षण होने लगा। मैं उसके अल्हडपन और मस्त शारीरिक रचना से बड़ा उत्तेजित होने लगा। मैंने अनुभव किया की मेरा लण्ड उसकी याद आते ही खड़ा होने लगता था। मुझे मेरे लण्ड को सहलाना अच्छा लगने लगा। पर मैं तब भी मेरी शारीरिक उत्तेजनाओं को ठीक से समझ नहीं पा रहा था।

एकदिन मैं अपने कमरे में बैठा अपनी पढ़ाई कर रहा था। माँ पडोसी के घर में कोई धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने गयी थी। झाड़ू लगाते हुए मंजरी मेरे कमरेमें आ पहुंची। जब उसने देखा की आसपास कोई नहीं था तो वह मेरे पास आयी और धीरे से फुफुसाकर बोली, “छोटे भैया, एक बात बोलूं? तुम बुरा तो नहीं मानोगे?”

मैं एकदम सावधान हो गया। लगता था उस दिन कुछ ख़ास होने वाला था। मैंने बड़ी आतुरता से मंजरी की और देखा और कहा, “नहीं, मैं ज़रा भी बुरा नहीं मानूंगा। हाँ, बोलो, क्या बात है?”

मंजरी मेरे [पाँव के पास आकर बैठ गयी और बोली, “तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो। तुम सीधे सादे भले इंसान हो। आगे चलकर पढ़ लिख कर तुम बड़े इंसान बनोगे। मैं भला एक गंवार और गरीब। क्या तुम मुझे याद रखोगे?” naukrani ki alhad jawani

ऐसा कह कर वह मेरे निचे लटकते पाँव पर वह हलके हलके प्यारसे हाथ फिराने लगी। उस दिन मैंने चड्डी पहन रखी थी। धीरे धीरे उसका हाथ ऊपर की और बढ़ा और उसने मेरी जांघों पर हाथ फिराना शुरू किया। मेरे मनमें अजीब सी हलचल शुरू हो गयी। मंजरी ने फिर उसका हाथ थोड़ा और ऊपर लिया और उसका हाथ मेरी चड्डी के अंदर घुसेड़ा। मैं थोड़ा हड़बड़ाकर बोला, “मंजरी यह क्या कर रही हो?”

मंजरी अपना हाथ वहीं रखकर बोली, “भैया, अच्छा नहीं लग रहा है क्या? क्या मैं अपना हाथ हटा दूँ?”

मैं चुप रहा। अच्छा तो मुझे लग ही रहा था। मैं जूठ कैसे बोलूं। मैंने कहा, “ऐसी कोई बात नहीं, पर यह तुम क्या कर रही हो?” naukrani ki alhad jawani

“ऐसी कोई बात नहीं” यह सुनकर मंजरी समझ गयी की मुझे उसका हाथ फिराना बहुत अच्छा लग रहा था। उसने अपना हाथ मेरी चड्डी में और घुसेड़ा और मेरा लण्ड अपनी उँगलियों में पकड़ा और उसे प्यार से एकदम धीरे धीरे हिलाने लगी। मेरा लण्ड किसी ने पहली बार पकड़ा था। मुझे एहसास हुआ की मेरे लण्ड में से चिकनाई रिसने लगी थी।

उस चकनाई से शायद मंजरी की उंगलियां भी गीली हो गयी थी। पर मंजरी ने मेरे लण्ड को पकड़ रखा। जब मैंने उसका कोई विरोध नहीं किया तो साफ़ था की मैं भी मंजरी के उस कार्यकलाप से बहुत खुश था। मैंने महसूस किया की मेरा लण्ड एकदम बड़ा और खड़ा हो रहा था। देखते ही देखते मेरा लण्ड एकदम कड़क हो गया। naukrani ki alhad jawani

मंजरी ने बड़े प्यार से मेरी निक्कर के बटन खोल दिए और मेरे लण्ड को मेरी चड्डी में से बाहर निकाल दिया। मंजरी बोली, “ऊई माँ यह देखो! हे दैया, यह तो काफी बड़ा है! लगता है अब तुम छोटे नहीं रहे। भैया, देखो, यह कितना अकड़ा हुआ और खड़ा हो गया है।”

मैं खुद देखकर हैरान हो गया। मैं मंजरी की और देखता ही रहा। मेरा गोरा चिट्टा लण्ड उसकी उँगलियों में समा नहीं रहा था। मंजरी ने कहा, “भैया तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो। चलो आज मैं तुम्हें खुश कर देती हूँ।” naukrani ki alhad jawani

ऐसा कहते हुए मंजरी ने मेरे लण्ड को थोड़ी फुर्ती से हिलाना शुरू किया। तब मेरी हालत देखने वाली थी। मैं उत्तेजना के मारे पागल हो रहा था। मैंने लड़का लडकियां एक दूसरे से सेक्स करतें हैं और उसमें लण्ड की भूमिका होती है यह तो सूना था पर यह पहली बार था की मेरा लण्ड कोई दुसरा इंसान हिला रहा था। जब भी मुझे कोई उत्तेजनात्मक विचार आता था या तो मैं कोई लड़की की सेक्सी तस्वीर देखता था तो मैं ही अपना लण्ड सहलाता था। पर जब मंजरी की उंगलियां मेरे खड़े लण्ड से खेलने लगी तो मुझे एक अजीब एहसास हुआ जो बयान करना मुश्किल था।

मेरे पुरे बदन में एक अजीब सी उत्तेजना और आंतरिक उन्माद महसूस होने लगा। न सिर्फ मेरा लण्ड बल्कि मेरे पूरा बदन जैसे एक हलचल पैदा कर रहा था। जैसे जैसे मंजरी ने अपनी उंगलियां मेरे लण्ड की चमड़ी पर दबा कर उसे मुठ मारना तेजी से शुरू किया तो मेरे मन में अजीब सी घंटियाँ बजने लगीं। मंजरी ने मुठ मारने की अपनी गति और तेज कर दी। अब मैं अपने आपे से बाहर हो रहा था ऐसा मुझे लगने लगा। naukrani ki alhad jawani

मैंने मंजरी का घने बालों वाला सर अपने दोंनो हाथों के बिच जकड़ा और मेरे मुंह से निकल पड़ा, “अरे मंजरी यह तुम क्या कर रही हो?” मुझे एक अजीब सा अद्भुत उफान अनुभव हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे मैं उत्तेजना के शिखर पर पहुँच रहा था। मेरा पूरा बदन अकड़ रहा था।

मैं मंजरी के हाथ से किया जा रहा हस्तमैथुन की लय में लय मिलाते हुए अपना पेडू ऊपर निचे करने लगा जिससे मंजरी को पता लग गया की मैं भी काफी उत्तेजित हो गया था और जल्दी ही झड़ने वाला था। मंजरी ने अपने हाथों से मुठ मारने की गति और तेज कर दी। मेरा सर चक्कर खा रहा था। एक तरह का नशा मेरे दिमाग पर छा गया था। मेरे शरीर का कोई भी अंग मेरे काबू में नहीं था। naukrani ki alhad jawani

एक ही झटके में मेरे मुंह से “आह…” निकल पड़ी और इस तरह सिसकारियां लेते हुए मैंने देखा की मेरे लण्ड में से पिचकारियां छूटने लगीं। सफ़ेद सफ़ेद मलाई जैसा चिकना पदार्थ मेरे लण्ड में से निकला ही जा रहा था। मंजरी की उंगलियां मेरी मलाई से सराबोर हो गयीं थी।

मैंने पहली बार मेरे लण्ड से इतनी मलाई निकलते हुए देखि। इसके पहले हर बार जब मैं उत्तेजित हो जाता था, तब जरूर मेरे लण्ड से चिकना पानी रिसता था। पर मेरे लण्ड से इतनी गाढ़ी मलाई निकलते हुए मैंने पहली बार देखि।

मंजरी अपनी उँगलियों को अपने घाघरे से साफ़ करते हुए बोली, ” भैया अब कैसा लग रहा है?” naukrani ki alhad jawani

मैं बुद्धू की तरह मंजरी को देखता ही रह गया। मेरी समझ में नहीं आया की क्या बोलूं। उस समय मैं ऐसे महसूस कर रहा था जैसे मैं आसमान में उड़ रहा था। मैं अपने आपको एकदम हल्का और ताज़ा महसूस कर रहा था जैसे पहले कभी नहीं लगा। इतना उत्तेजक और उन्माद पूर्ण अनुभव उसके पहले मुझे कभी नहीं हुआ था।

मेरी शक्ल देखने वाली रही होगी, क्यूंकि मेरी शक्ल देखकर मंजरी खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली, “देखा न? अब चेहरे पर कैसी हवाईयां उड़ रही हैं? भैया आज आप एक लड़के से मर्द बन गए। अब समझलो की आपको कोई अपनी मर्जी से तैयार हो तो ऐसी औरत को चोदने का लाइसेंस मिल गया। ”

मैं मंजरी के इस अल्हड़पन से हतप्रभ था। एक लड़की कैसे इतनी खुल्लमखुल्ला सेक्स के बारेमें ऐसी बात कर सकती है, यह मेरी समझ से बाहर था। खैर, उस दिन से जब भी मौक़ा मिलता, मंजरी जरूर मेरे कमरे में झाड़ू पोछे का बहाना करके आती और एक बार मेरे लण्ड को छूती। जब कोई नहीं होता तो वह अपने हाथों से मुझे हस्तमैथुन करा देती। मैं भी उसका इंतजार करने लगा। पर यह कहानी मेरे बारे में नहीं है। naukrani ki alhad jawani

राकेश के वापस आने के बाद राकेश और मंजरी की शरारत भरी मस्ती बढ़ती ही जा रही थी। करीब हर रोज, माँ की नजर चुका कर राकेश मंजरी को जकड ने कोशिश में लगा रहता था और मंजरी उसे अंगूठा दिखाकर एक शरारत भरी नजर से देख हंस कर खिसक जाती थी। एक दिन सुबह मैं कमरे में पढ़ाई कर रहा था तब मंजरी आयी। थोड़ी देर तक तो हम दोनों बात करते रहे पर फिर मुझसे रहा नहीं गया, तो मैंने पूछ ही लिया की उसके और राकेश के बिच में क्या चल रहा था।

मंजरी ने मुझे कहा,”छोटे भैया, उसके लण्ड में जवानी की खुजली हो रही है। वह अपनी हवस की भूख मुझसे बुझाना चाहता है। ” naukrani ki alhad jawani

तब मैंने मंजरी की और देखा और पूछा, “और तुम? तुम क्या चाहती हो?”

मंजरी ने सीधा जवाब दिया, “छोटे भैया, सच कहूं? मेरा भी वही हाल है। मुझे भी खुजली हो रही है। पर मैं आसानी से उसके चुंगल में फंसने वाली नहीं हूँ। मैं देखना चाहती हूँ की उसमें कितना दम है।”

मैं मंजरी की बात सुन हैरान रह गया। बापरे! एक सीधी सादी गॉंव की लड़की और इतनी चालाक?

मेरी उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी। मैं देखना चाहता था की उन दोनों की जवानी क्या रंग लाती है। naukrani ki alhad jawani

ऐसे ही दिन बितते चले गए। राकेश को मंजरी को फाँसने का मौक़ा नहीं मिल रहा था। माँ के रहने से मंजरी को खिसक ने का मौक़ा मिल जाता था, और राकेश हाथ पे हाथ धरे वापस चला जाता था।

कुछ दिनों के बाद एक दिन हमारी कॉलोनी के दूसरे छोर पर सुबह कॉलोनी की सारी महिलाओं ने मिलकर एक घर में सत्संग का कार्यक्रम रखा था। माँ सुबह तैयार हो कर मुझे घर का ध्यान रखने की हिदायत दे कर सत्संग में जाने के लिए निकली। मैं अपनी पढ़ाई में लगा हुआ था की मंजरी आयी और बर्तन मांजने बैठ गयी। बर्तन करने के बाद जब रसोई में झाड़ू लगा रही थी तब तो राकेश मिश्रा पाइप लेकर घरमें दाखिल हुआ। उसे पता लग गया की घर में मेरे और मंजरी के अलावा कोई नहीं था। naukrani ki alhad jawani

राकेश ने मुझे देखा तो इशारा कर के मुझे मंजरी के बारेमें पूछने लगा। मैंने राकेश को रसोई की और इशारा किया। राकेश समझ गया की मंजरी रसोई में है। राकेश ने मुझे अपने नाक और होंठों पर उंगली रखकर चुप रहने का इशारा किया। मैं समझ गया की उस दिन कुछ न कुछ तो होने वाला था। बस फिर क्या था?

उसने चुपचाप टंकी में पाइप डाला और बाहर जा कर नलका खोल कर पाइप को टंकी में पानी भर ने छोड़ दिया। मंजरी तब रसोई घर में झाड़ू लगा रही थी। उसे पता नहीं था की राकेश आया था। राकेश चोरीसे दरवाजे के पीछे छुपते हुए मंजरी को देखने लगा। मैं सारा नजारा देख रहा था। जैसे ही मंजरी दरवाजे से बाहर निकलने लगी की राकेश ने उसे अपनी बाहों में दबोच लिया। naukrani ki alhad jawani

राकेश ने मंजरी को पीछे से दबोच लिया था, उसकी भी रजामंदी ही थी.. अब आगे क्या होने वाला था ये सोचके मेरा दिल धड़क रहा था। खैर, मैं उनको छुप के ताक रहा था। इन sexy love stories का अगला भाग..

मंजरी राकेश की बाहोंमें छटपटाने और चिल्लाने लगी। उसे पता था की घरमें मेरे अलावा कोई भी नहीं था। जैसे तैसे राकेश से अपने आपको छुड़ा कर वह मेरे कमरे की और भागी और मेरे कमरे में घुस कर उसने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। मैं अपने कमरे में ही था। तब मैंने मंजरी से पूछा, “क्या मैं चिल्ला कर सब को बुलाऊँ?”

मंजरी ने मेरा हाथ पकड़ा और बोली, “यह हमारे तीनों के बिच की बात है। किसी चौथे को पता नहीं लगना चाहिए। ठीक है?” naukrani ki alhad jawani

मैंने अपना सर हिलाया। उधर बाहर से राकेश दरवाजा खटखटाने लगा। मैंने मंजरी की और देखा। वह जोर जोर से हाँफ रही थी। जोर जोर से सांस लेने के कारण उसकी छाती धमनी की तरह ऊपर निचे हो रही थी। उसके मोटे फल सामान परिपक्व स्तन ऊपर निचे हो रहे थे। मैं उसे देखते ही रहा। मंजरी ने मुझे उसकी छाती को घूरते हुए देखा तो बोली, “कैसी लग रही है मेरी चूचियां? मेरे मम्मे अच्छे लग रहे हैं ना? तुम्हें उनको छूना है क्या?”

मैं घबड़ाया हुआ मंजरी की और देखने लगा। मंजरी ने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी छाती पर रखा और बोली, “दबाओ मेरे शेर, इन्हें खूब दबाओ। आज इन्हें खूब दबना है।” naukrani ki alhad jawani

मैं भी पागलों की तरह मंजरी के दोनों स्तनों को अपने दोनों हाथों से उसकी चोली के ऊपर से ही जोर से दबाने लगा। आह! कितने मुलायम और कितने कड़क थे उसके मम्मे! उतने में ही बाहर से राकेश की जोर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आयी। वह हमें दरवाजा खोलने के लिए कह रहा था। मैंने फिर मंजरी की देखा। मैंने मंजरी से कहा, “आज राकेश तुम्हें नहीं छोड़ेगा। आज वह पक्के इरादे से आया लगता है। क्या करना करना है, बोलो?”

मंजरी की सांस थोड़ी थमी तो वह बोली, “धीरे से अचानक ही दरवाजा खोलना। मैं निकल कर भागुंगी। मैं देखती हूँ वह मुझे कैसे पकड़ पाता है?”

मैं चुपचाप दरवाजे के करीब खड़ा हो गया, और एक ही झटके में मैंने दरवाजा खोल दिया। मंजरी एकदम निकल कर भागी। पर उसका इतना बड़ा और मोटा घाघरा उसको ज्यादा तेजी से कहाँ भागने देने वाला था? थोड़ी ही दुरमें राकेश ने भाग कर पकड़ लिया और उसे अपनी बाहोंमें फिरसे दबोच लिया।

अब मंजरी कितना भी छटपटाये वह उसे छोड़ने वाला नहीं था। देखने की बात वह थी की मंजरी भी उसकी पकड़ से छूटने की बड़ी भारी कोशिश कर रही थी पर थोड़ा सा भी चिल्लाना तो क्या आवाज भी नहीं निकाल रही थी। ऐसा लग रहाथा जैसे वह नहीं चाहती थी की कोई उसे छुड़ाए पर वह जैसे राकेश की मर्दानगी को चुनौती दे रही थी। naukrani ki alhad jawani

राकेश की चंगुल से छूटने के लिए वह राकेश के दोनों हाथों का पाश, जो उसकी छाती पर था उसे खोलने का जोरों से प्रयास कर रही थी। मंजरी की छाती फिर से श्रम के कारण हांफने से ऊपर निचे हो रही थी। मंजरी की परिपक्व स्तन ऐसे फुले हुए थे जैसे कोई दो बड़े गोल बैंगन उसकी छाती में रख दिए गए हों।

मंजरी के जोर जोर से सांस लेने से वह ऐसे फ़ैल रहे थे और ऊपर नीचे हो रहे थे जिसको देखकर किसीका भी लण्ड फुफकारे मारने लगे। राकेश के बाहों में मंजरी के बड़े स्तन इतने दबे हुए थे फिर भी वह दबने से फूलने के कारण राकेश के हाथ के दोनों तरफ फ़ैल रहे थे और साफ दिख रहे थे। राकेश ने मंजरी के दोनों पांवों को अपने दोनों पांवों के बिच में फँसा कर उसकी गांड के पीछे अपना लण्ड दबा रखा था। मंजरी असहाय हो कर फड़फड़ा रही थी। naukrani ki alhad jawani

साथ ही साथ मंजरी राकेश को उल्ट पुलट बोल कर उकसा भी रही थी, “साले छोड़ मुझे। तू क्या सोच रहा है, मैं इतनी आसानी से फँस जाउंगी। अरे तू मुझे क्या फाँसेगा, देख मैं कैसे भाग जाती हूँ। ताकत है तो रोक ले मुझे। मैं भी देखती हूँ तू क्या कर सकता है। अरे तुझमें ताकत है तो अपनी मर्दानगी दिखा मुझे।” ऐसा और कई बातें बोलकर जैसे वह राकेश को और भड़काना चाहती थी। पर राकेश उसे कहाँ छोड़ने वाला था। राकेश ने मंजरी को अपनी बाहोंमें ऐसे जकड कर कस के पकड़ा था की आज वह छूट नहीं सकती थी।

मंजरी के जवाब में राकेश भी बोलने लगा, “साली, तू क्या समझती है? मैं क्या कोई ऐसा वैसा ढीलाढाला नरम मर्द हूँ जो तु मुझसे इतनी आसानी से पिंड छुड़ा कर भाग जायेगी और फिर मुझे इशारा कर के उकसाती और भड़काती रहेगी? मैं जानता हूँ की तेरी चूत में मेरे लण्ड के लिए बहुत खुजली हो रही है। naukrani ki alhad jawani

इसी लिए तू मुझे हमेशा उकसाती और भड़काती रहती है। अगर तु मुझे पसंद नहीं करती है तो मुझे अभी बोल दे, मैं तुझे इसी वक्त छोड़ दूंगा। मैं तेरे पर कोई जबर दस्ती नहीं करूंगा, पर तू मुझे चुनौती मत दे और यह मत सोच की अगर तू मुझे उकसाएगी तो मैं चुपचाप बैठूंगा। तुझे मेरी मर्दानगी देखनी है न? तो मैं तुझे आज मेरी मर्दानगी दिखाऊंगा।”

उस तरफ मंजरी भी कोई कम नहीं थी। वह बोली, “अच्छा? तू मुझे चुनौती दे रहा है? अरे तू मुझे अपनी मर्जी से क्या छोड़ेगा? मैं कोई तुझसे कम नहीं हूँ। मैं खुद ही इतनी ताकतवर हूँ की तुझको आसानी से मात दे दूंगी। और तू क्या कहता है, मैं तुझे यह कह कर मुझे छोड़ने के लिए भीख मांगू की तू मुझे पसंद नहीं है? naukrani ki alhad jawani

अरे पसंद नापसंद की तो बात ही नहीं है। जो मुझे वश में कर लेगा मैं तो उसीकी बनकर रहूंगी। तुझमें यदि ताकत है तो मुझे उठाकर कमरे में ले जा और दिखा अपनी मर्दानगी। तू क्या सोच रहा था की आज घर में कोई नहीं है तो क्या मैं तुझसे ड़र जाउंगी? मैं डरने वालों में से नहीं।”

यह साफ़ था की मंजरी राकेश से छूटना नहीं चाहती थी। वह राकेश को मर्दानगी की बार बार चुनौती देकर शायद यह साबित करना चाहती थी की अगर राकेश को उसे चोदना है तो उसे वश में करना पडेगा। मेरे लिए भी यह प्रसंग कोई पिक्चर के उत्तेजक द्रश्य से कम नहीं था। मेरा भी लण्ड खड़ा हो गया और मेरे जांघिए में फटकार मारने लगा। मेरा हाथ बार बार मेरे पांवों के बिच में जाकर मेरे चिकने लण्ड को सहलाने लगा। naukrani ki alhad jawani

अगर मंजरी राकेश को कहती की राकेश उसे पसंद नहीं तो राकेश उसे छोड़ देता। यह साफ़ था की राकेश उसपर जबरदस्ती या बलात्कार करना नहीं चाहता था। पर वह तो राकेश को बार बार चुनौती दे कर के उसके चुंगुल में फंसना ही चाहती थी, ऐसा मुझे साफ़ साफ़ लगा। बस फर्क सिर्फ इतना ही था की वह राकेश को उसे चोदने का खुल्लम खुल्ला आमत्रण नहीं दे रही थी। शायद कोई भी साधारण नारी कोई भी मर्द से चुदवाने के लिए ऐसा खुल्लम खुल्ला निमत्रण नहीं देगी।

जब राकेश ने मंजरी से सूना की वह राकेश को चुनौती दे रही थी की अगर राकेश उसे वश में कर लेगा तो मंजरी उसीकी बन जायेगी, तो राकेश में अजब का जोश आगया। उसने मंजरी की गांड अपने दोनों पाँव के बिच में फँसायी और पिछेसे उसे धक्का मारने लगा। उपरसे अपने हाथों का पाश थोड़ा ढीला करके एक हाथ उसने हटाया और वह मंजरी के मम्मों को दबाने लगा। naukrani ki alhad jawani

मंजरी को एक मौक़ा मिल गया। जैसे ही राकेश का पाश थोड़ा ढीला पड़ा की मंजरी ने एक धक्का देकर राकेश का हाथ हटा दिया और भागने लगी। पर उसके पाँव तो राकेश के पाँव में फंसे हुए थे। भागती कैसे?मंजरी धड़ाम से निचे गिर पड़ी। साथ में अपना संतुलन न रखने के कारण राकेश भी साथ में मंजरी के ऊपर गिरा। तब मंजरी निचे और राकेश ऊपर हो गए। मैंने देखा की राकेश ने मंजरी को जमींन पर लेटे हुए अपनी बाहों में ले लिया।

अब उसके होंठ मंजरी के होंठों से लगे हुए थे। उसने अपने होंठ मंजरी के होंठों पर भींच दिए और मंजरी के होंठों को चुम्बन करने लगा। उसका कड़ा लण्ड मंजरी के घाघरे के उपरसे उसकी चूत में ठोकर मार रहा था। मंजरी राकेश के दोनों बाँहों में फँसी हुई थी। राकेश ने मंजरी को अपने निचे ऐसे दबा रखा था की हिलना तो दूर की बात, मंजरी साँस भी ठीक तरह से ले नहीं पा रही थी। naukrani ki alhad jawani

मुझे तब लगा की मंजरी भी अब राकेश के चुंगल में फँस ही गयी। राकेश के मुंह की लार उसके मुंह में जाने लगी। राकेश ने अपनी जीभ से मंजरी के होंठ खोले और उसमें अपनी जीभ घुसेड़ी। आखिर में विरोध करते हुए भी मंजरी ने अपना मुंह खोला और राकेश की लार अपने मुंहमें चाव से निगल ने लगी। राकेश अपनी जीभ मुंह में डाल ने की कोशिश कर रहा था।

थोड़े से औपचारिक विरोध के बाद मंजरी ने जीभ को मुंह में ले लिया और उसे चूसने लगी। अब ऐसा लग रहा था की मंजरी आखिर में राकेश के चँगुल में फँस ही गयी थी। जब राकेश ने देखा की मंजरी अब उसके जाल में फँस गयी है और राकेश के वजन से दबने के कारण वह ठीक से सांस नहीं ले पा रही थी, तो राकेश को मंजरी पर तरस आगया। वह थोड़ा शिथिल हो गया। वह मंजरी के उपरसे थोड़ा खिसका ताकि मंजरी ठीक से सांस ले सके।

पर मंजरी भी तो एक जंगली बिल्ली से कम नहीं थी वह इतनी आसानी से फँसने वाली नहीं थी। जैसे ही राकेश खिसका की मंजरी उठ खड़ी हुई और उसने एक जोर का धक्का लगा कर राकेश को एक तरफ गिरा दिया और एक लम्बी छलांग मार के कमरे में से बाहर की और भागी। भागते हुए वह राकेश को अपना अंगूठा दिखाकर बोली, “ले लेते जा। मैं देखती हूँ तू मुझे अब कैसे पकड़ता है। अब मैं तेरे हाथ में नहीं आने वाली। बड़ा मर्द बनता फिरता है। हिम्मत है तो अब बाहर रास्ते पर आ और फिर मुझे पकड़ के दिखा।” naukrani ki alhad jawani

उस समय राकेश के चेहरे के भाव देखते ही बनाते थे। पहले तो वह भौंचक्का सा देखता रहा और फिर वह एकदम झल्लाया और उसके मुंह से निकल ही पड़ा, “यह मादर चोद की औलाद ऐसे नहीं मानेगी। अब मैं तुझे दिखाता हूँ की मर्दानगी किसे कहते हैं।”

ऐसा बोलकर वह भी घर के बाहर मंजरी के पीछे दौड़ पड़ा। मंजरी भागती हुई थोड़ी आगे निकली की एक और से कोई कार आ रही थी तो उसे रुकना पड़ा। इतना समय राकेश के लिए काफी था। राकेश ने एक छलांग लगाई और मंजरी को पकड़ा और उसे अपनी बाहों में उठा कर वापस घर में ले आया। मंजरी उसकी बाहोंमें छटपटाती रही और बोलती रही, “अरे साले हरामी, एक गाडी आगयी तो मुझे रुकना पड़ा, जो तूने मुझे पकड़ लिया। naukrani ki alhad jawani

इसमें कौन सी बहादुरी है?” ऐसा बोलते हुए मंजरी कई हलकी भारी गालियां राकेश को देती रही और जोर जोर से हाथ राकेश के सीने में पिट पिट कर मारने लगी और जोर से पाँव आगे पीछे करती रही। हाथ पाँव मार कर अपने आपको छुड़ाने की कितनी कोशिशें की। पर अब राकेश एकदम सतर्क था। उसने मंजरी को हिलने का ज़रा भी मौक़ा नहीं दिया।

रास्ते में कई लोग यह तमाशा देखते भी रहे पर राकेश ने उसकी परवाह किये बिना उसे घर में ले आया। जैसे ही वह घरमें घुसा तो उसने मुझसे कहा, “छोटे भैया, घर का दरवाजा अंदर से बंद करलो प्लीज। आज मैं इस लौंडियाँ को मेरी मर्दानगी दिखाता हूँ। कोई भी आ जाये तो दरवाजा मत खोलना जब तक मैं इस लौंडियाँ से निपट न लूँ। आज मैं इसकी बजा कर ही छोडूंगा। बेशक देखना चाहो तो आप भी देख लो।” naukrani ki alhad jawani

मैं मंजरी को देख रहा था। राकेश की बाहों में वह छटपटा रही थी और छूटने की कोशिश में लगी हुई थी पर उसने एक भी बार न तो मुझे न तो रास्तेमें खड़े तमाशाबीन लोगों को चिल्ला कर बचाने के लिए आवाज लगाई।

मैं सोच रहा था की कहीं राकेश मंजरी पर बलात्कार तो नहीं कर रहा? मैंने थोड़ा घबड़ाते हुए मंजरी से चिल्ला कर पूछा, “मंजरी, क्या राकेश तुम पर बलात्कार तो नहीं कर रहा? क्या मैं तुम्हारी मदद करूँ? क्या मैं दूसरे लोगों को बुलाऊँ?”

मंजरी ने भी चिल्लाते हुए मुझे जवाब में कहा, “अरे यह भड़वा क्या मुझ पर बलात्कार करेगा? मुझमें अपने आप को छुड़ाने की पूरी क्षमता है। अगर मैं न चाहूँ तो यह मुझे छू भी नहीं सकता। आप निश्चिन्त रहो। मुझे कोई भी मदद नहीं चाहिए। अब यह मामला मेरे और राकेश के बिच का है।”

मंजरी खुद राकेश से निपटना चाहती थी। वह शायद जानती भी थी की राकेश उसे नहीं छोड़ेगा। वह जानती थी की राकेश उसे चोद कर ही छोड़ेगा। यह साफ़ था की वह भी राकेश से चुदवाना चाहती थी। वह हांफ रही थी, पर उसके चेहरे पर एक अजीब सा भाव था। वह मदमस्त लग रही थी। उसकी जवानी और खिली हुई लग रही थी। मंजरी की आँखों में एक अजीब सा नशा छाया हुआ था। naukrani ki alhad jawani

शायद कोई औरत यह जानते हुए की अब थोड़ी ही देर में पहली बार उसकी चुदाई होने वाली है, उसके मुंह पर शायद ऐसे ही भाव होंगे, क्यूंकि अब मुझे पूरा यकीन हो गया था की मंजरी राकेश से उस दिन जरूर चुदने वाली थी। मंजरी भी अब अच्छी तरह समझ गयी थी की उसकी सील उसदिन टूटने वाली थी। वह तो कई महीनों से इसका इंतजार कर रही थी। पर शायद वह राकेश को परखना चाहती थी। वह ऐसे वैसे किसी भी मर्द को अपनी जात आसानी से देने वाली नहीं थी।

राकेश मंजरी को उठाकर मेरे कमरे में ले आया। मंजरी अपनी छटपटाहट से राकेश का काम मुश्किल बना रही थी। मंजरी जैसे तैसे राकेश के चुंगल से छटकना चाहती थी। पर अब राकेश ज़रा भी असावधान रहने वाला नहीं था। राकेश ने मंजरी को पलंग पर लिटाया। मैं कमरे से बाहर निकल आया और पीछे से दरवाजा बंद किया तो राकेश ने कहा, “छोटे भैया, दरवाजा खुला ही रहने दो। आज यह छमनियाँ मुझसे कैसे चुदती है वह तुम भी देखो।”

पर मैं बाहर निकल आया। मुझे अंदर से दोनों की आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी। मंजरी अभी भी राकेश को चुनौती दे रही थी। वह बोली, “अच्छा! तो तू सोच रहा है तू मुझे आज चोदेगा? तू अपने आपको क्या समझता है? तू मुझे छूना भी मत। अगर तूने मुझे छुया भी तो मैं तुझे नहीं छोडूंगी।” naukrani ki alhad jawani

तब राकेश बोला, “अरे छमिया, तू मुझे छोड़ना भी मत। मैं भी तुझे चोदुँगा जरूर, पर छोडूंगा नहीं। आज मैं तुम्हें पहली बार चोदुँगा पर आखरी बार नहीं। अब तू मेरी ही बन कर रहेगी। तू मेरे बच्चों की माँ बनेगी और मेरे पोतों की दादी माँ।”

मंजरी ने यह सूना पर पहली बार उसका जवाब नहीं दिया। राकेश ने उसे मेरे पलंग पर लिटाया और भाग न जाए इसके लिए राकेश ने मंजरी को अपने बदन के नीच दबा कर रखा। राकेश ने अपना सारा वजन मंजरी के बदन पर लाद दिया था। मंजरी ने एड़ीचोटी का जोर लगा दिया पर अब राकेश उसे छोड़ने वाला नहीं था। naukrani ki alhad jawani

मुझसे रहा नहीं। गया मैंने दरवाजे के अन्दर झांका तो देखा की राकेश मंजरी को अपने तले दबा कर उसके ऊपर चढ़ गया था। मंजरी को राकेश ने अपनी दो टाँगों में फाँस कर अपना लण्ड उसकी चूत से सटा कर वह मंजरी के ऊपर लेट गया। मंजरी के लिए अब थोड़ा सा भी हिलना नामुमकिन था। उसने अपना मुंह मंजरी के मुंह पर रखा और अपने होंठ मंजरी के होंठ से भींच कर उसे चुम्बन करने लगा। इतना घमासान करने के बावजूद जब राकेश के होंठ मंजरी के होंठ से सट गए तो मंजरी चुप हो गयी और राकेश को चुम्बन में साथ देने लगी। उसके हाथ फिर भी राकेश की छाती को पिट रहे थे।

राकेश ने अपनी जीभ मंजरी के मुंह में डाली और उसे अंदर बाहर करने लगा। मुझे बड़ा आश्चर्य तब हुआ जब मैंने देखा की मंजरी ने अपने होठों से राकेश की जीभ को जकड लिया और उसकी जीभ को चूसना शुरू किया। अब ऐसा लग रहा था जैसे राकेश मंजरी के मुंहको अपनी जीभ से चोद रहा था। इस तरह राकेश मंजरी के मुंह को अपनी जीभ से काफी समय तक चोदता रहा और मंजरी चुपचाप इसे एन्जॉय करती रही।

जब राकेश ने अपना मुंह मंजरी के मुंह से हटाया तो मंजरी बोली, “राकेश तुम अपना शरीर ऊपर से थोड़ा हटा कर तो देखो, मैं कैसे भागती हूँ।” naukrani ki alhad jawani

राकेश ने मंजरी की हुए हँस कर बोलै, “अच्छा? मैं उपर से हट जाऊं तो तुम भाग जाओगी?” मंजरी ने मुंडी हिलायी।

अचानक एक ही झटके में राकेश ने मंजरी की चोली जोर से खिंच कर फाड़ डाली। फिर उसने मंजरी की ब्रा को पकड़ा और एक ही झटक में तोड़ फेंका। मंजरी ऊपर से नंगी हो गयी। उसकी बड़े बड़े स्तन एकदम पहाड़ की दो चोटियों की तरह उन्नत और उद्दण्ड दिख रहे थे। मैं दरवाजे की फाड़ में से मंजरी की इतनी सुन्दर रसीली भरी हुई चूचियों को देखता ही रहा। राकेश ने अपना मुंह मंजरी की चूँचियों पर सटा दिया और वह उनको चूसने लगा। naukrani ki alhad jawani

मंजरी की शकल उस समय देखने वाली थी। वह अपने मस्त स्तनों को पहली बार कोई मर्द से चुसवा रही थी और उसका नशा उसकी आखों में साफ़ झलक रहा था। अब वह अपने बाग़ी तेवर भूल ही गयी हो ऐसा लग रहा था।

अब वह राकेश के मुंह को अपने स्तनों पर अनुभव कर रही थी और ऐसा लग रहाथा की वह चाहती नहीं थी की राकेश वहाँ से अपना मुंह हटाए। राकेश भी जैसे सालों का प्यासा हो ऐसे मंजरी के स्तनों पर चिपका हुआ था। लग रहा था जैसे मंजरी के स्तनों में से कोई रस झर रहा था जिसे पीकर राकेश उन्मत्त होरहा था। ऐसे ही कुछ मिन्टों तक चलता रहा। उसके बाद राकेश ने अपना मुंह मंजरी के स्तनों से हटाया और स्वयं भी बाजू में हट गया। राकेश मंजरी की और देखने लगा। वह मंजरी को खुली चुनौती दे रहा था, की अगर मंजरी में हिम्मत हो तो वह भाग कर दिखाए। naukrani ki alhad jawani

मंजरी ने राकेश की और देखा। वह धीरे से बैठ गयी। मैं हैरान था की मंजरी के बैठने पर भी उसके स्तन ज़रा से भी झुके नहीं। उनमें ज़रा सी भी शिथिलता नहीं थी। उसकी निप्पलेँ कड़क और एकदम अकड़ी हुई थी। उसके स्तन ऐसे भरे हुए अनार के फल के सामान फुले हुए और मंजरी की अल्हड़ता को साक्षात् रूप में अभिभूत कर रहे थे।

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मंजरी ने एक नजर राकेश की और देखा और बोली, “लेले मजे, तुम मुझे इस तरह नंगी कर के कह रहे हो भग ले? तुम जानते हो की मैं ऐसे बाहर नहीं जा सकती। तुम बहुत चालु हो। आखिर तुमने मुझे फाँस ही लिया। अब मैं तुमको छोडूंगी नहीं। तू क्या समझता है अपने आपको।”

ऐसा कह कर मंजरी ने राकेश का कुरता पकड़ कर उसे अपनी और खींचा। राकेश असावधान था और धड़ाम से मंजरी के ऊपर जा गिरा। अब मंजरी ने उसे अपनी बाहों में लिया और कस के पकड़ा और बोली, “अब तू मुझसे दूर जा कर के तो दिखा। अब तक तो इतना फड़फड़ा रहा था। अब आजा, मेरी प्यास बुझा रे! अब तक जो तू मुझे इतने जोर से अपनी मर्दानगी का विज्ञापन कर रहा था तो उसको दिखा तो सही।”

मंजरी और राकेश की कामुक कशमकश किसी फिल्म के सीन से कम नहीं थी. वो उसे तडपा रही थी और वो जाल पे जाल बिछा रहा था. इस desi kahani का अगला धमाकेदार हिस्सा.. naukrani ki alhad jawani

मंजरी ने राकेश का कुरता पकड़ कर उसे अपनी और खींचा। राकेश असावधान था और धड़ाम से मंजरी के ऊपर जा गिरा। अब मंजरी ने उसे अपनी बाहों में लिया और कस के पकड़ा और बोली, “अब तू मुझसे दूर जा कर के तो दिखा। अब तक तो इतना फड़फड़ा रहा था। अब आजा, मेरी प्यास बुझा रे! अब तक जो तू मुझे इतने जोर से अपनी मर्दानगी का विज्ञापन कर रहा था तो उसको दिखा तो सही।”

मंजरी ने आगे बढ़ कर राकेश के पाजामे का नाडा खोल दिया और देखते ही देखते राकेश का पजामा निचे गिर पड़ा। राकेश अपने निक्कर में अजीब सा लग रहा था। मंजरी ने अपना हाथ राकेश के निक्कर पर उसकी टांगों के बिच में फिराया। वह उसके लण्ड का जैसे मुआयना कर रही थी। मंजरी ने राकेश के निक्कर के ऊपर से ही उसके लण्ड को सहलाना शुरू किया। जरूर उसका हाथ राकेश ले लण्ड से रिस रही चिकनाहट से चिकना हो गया होगा।

मुझे भी राकेश के लण्ड के फूलने के कारण उसकी निक्कर पर उसके पाँव के बिच बना हुआ तम्बू साफ़ दिखाई दे रहा था। मंजरी शायद राकेश के लण्ड की लम्बाई और मोटाई की पैमाइश कर रही थी। शायद उसके लिए किसी मर्द के लण्ड को छूने और सहलाने का पहला ही मौक़ा था। शायद मंजरी देखना चाहती थी की जो लण्ड जल्द ही उसकी चूत में घुसने वाला है वह उसकी चूत को कितना फैलाएगा और उसको कितना मजा देगा। naukrani ki alhad jawani

मंजरी के सहलाते ही देखते ही देखते राकेश का लण्ड फैलता ही जा रहा था। राकेश के पाँवोँ के बिच का तम्बू बड़ा ही होता जा रहा था। अब तो मुझे भी उसके पाँव के बिच का गीलापन साफ़ नजर आ रहा था। राकेश के लण्ड की पैमाइश करते ही मंजरी की बोलती बंद हो गयी। मंजरी शायद यह सोच कर चुप हो गयी की आखिर उसे भी तो राकेश का लण्ड चाहिए था। उसे भी तो उसके पाँव के बिच जवानी की ललक लगी हुई थी।

वह भी तो पिछले कितने हफ़्तों से इस लण्ड के सपने देख रही थी। शायद मंजरी ने यह नहीं सोचा होगा की राकेश का लण्ड उतना बड़ा होगा। जो भी कारण हो। मंजरी जो तब तक इतना हंगामा कर रही थी अब जैसे एक अजीब सी तंद्रा में राकेश के लण्ड का अपने हाथों में अनुभव कर रही थी और मंत्र्मुग्ष जैसी लग रही थी।

जबकि राकेश की नजरें मंजरी के सुगठित दो पके हुए आमके फल सामान स्तनों के मद मस्त आकार को देखने और हाथ दोनों को मसल ने और सहलाने में लगे हुए थे। मंजरी के उन्मत्त उरोज की निप्पलेँ आम की डंठल की तरह फूली और कड़क दबवाने और चुसवाने का जैसे बड़ी उत्सुकता पूर्वक इंतजार कर रही थीं।

उसकी मदमस्त चूँचियाँ राकेश के लण्ड पर केहर ढा रही थीं। राकेश के लिए रुकना तब बड़ा ही मुश्किल हो रहा होगा। तो फिर मंजरी का भी तो वैसा ही हाल था। मुझे साफ़ दिख रहा था की मंजरी भी राकेश से चुदवाने के लिए जैसे बाँवरी हो रही थी। अब उसका भी पूरा ध्यान राकेश के लण्ड पर था। naukrani ki alhad jawani

मंजरी ने धीरे से राकेश के निक्कर के बटनों को अपनी लम्बी उँगलियों से खोला और एकदम राकेश का लण्ड जैसे एक बड़ा अजगर छेड़ने से अपने बिल में से फुफकार मारते हुए बाहर आता है, वैसे ही राकेश की निक्कर से निकल कर मंजरी के हाथों में फ़ैल गया। राकेश का फुला हुआ लण्ड मंजरी की हथेली में देख कर मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मंजरी बड़ी मुश्किल से अपनी हथेली में उसे पकड़ पा रही थी। बार बार राकेश का लण्ड मंजरी की हथेली से फिसल कर निचे गिर कर लटक जाता था। मंजरी उसे बार बार वापस अपनी छोटी सी हथेली में ले रही थी।

राकेश का लण्ड देखते ही मंजरी को तो जैसे साप सूंघ गया हो ऐसी शकल हो गयी। वह मंत्रमुग्ध होकर चुपचाप वह एकटक लण्ड को ही देख रही थी। देखते ही देखते मंजरी ने पलंग से निचे उतर कर अपना सर राकेश की टांगों के बिच रखा और राकेश के लण्ड के करीब अपना मुंह ले गयी। कुछ देर तक तो वह राकेश के लण्ड को एकदम करीब से निहारती रही फिर धीरे से उसने अपनी जीभ लम्बी करके राकेश के लण्ड के टोपे को चाटना शुरू किया। राकेश का पूर्व रस राकेश के लण्ड के टोपे के केंद्र बिंदु से रिस्ता ही जा रहा था। मंजरी उसे अपनी जीभ से चाटकर निगलने लगी।

धीरे से फिर मंजरी ने अपना मुंह और निकट लिया और राकेश के लण्ड को अपने मुंह में अपने होठों के बिच ले लिया। धीरे धीरे उसने अपना सर हिलाना शुरू किया और राकेश के लण्ड के टोपे को पूरी तरह अपने मुंह में लेकर अपने होंठ और जीभ से अंदर बाहर करने लगी और साथ साथ चूसने लगी। राकेश भी तो अब मंजरी के कार्यकलाप से पागल हो रहा था। उसे तो कल्पना भी नहीं थी की ऐसी शेरनी जैसी लगने वाली यह अल्हड लड़की अब उसकी इतनी दीवानी हो जाएगी और एक भीगी बिल्ली की तरह उसके हाथ लग जायेगी । naukrani ki alhad jawani

अनायास ही राकेश भी अब अपना पेडू से अपना लण्ड मंजरी के मुंह में धक्के देकर अंदर बाहर करते हुए घुसेड़ने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे राकेश मंजरी के मुंह को चोद रहा था। मंजरी राकेश के इतने मोटे लण्ड को अपने मुंहमें पूरी तरह से ले नहीं पा रही थी। फिर भी अपने गालों को फुलाकर वह राकेश के लण्ड को चूसने लगी।

राकेश से रहा नहीं जा रहा था। राकेश ने हलके से अपने लण्ड को मंजरी के मुंह से निकाला और धीरे से मंजरी को बोला, “पगली, आज मुझे तुझे तेरी चूत में चोदना है। मैं अब तुझे मेरे इस लण्ड के लिए ऐसा पागल कर दूंगा की तू अब मेरे पीछे पीछे मुझसे चुदवाने के लिए मिन्नतें करेगी और तब ही मैं तुझे चोदूँगा।

यह सुनते ही जैसे मंजरी अपने मूल रूप में आ गयी और बोली, “हट बे लम्पट! यह तो मुझे तुझपे रहम आ गया। सोचा, चलो तू इतना पीछे पड़ा था तो तुझे ही देती हूँ। तू भी क्या याद करेगा। वरना मैं और तुझे मिन्नतें करूँ? अरे एकबार अपनी शकल आयने में तो देख।”

मंजरी राकेश को हड़काने में लगी हुई थी, की राकेश ने मंजरी के घाघरे का नाडा खोल दिया और मंजरी को पता भी नहीं चला। जैसे ही मंजरी समझी तो खड़ी हुई। मंजरी के खड़े होते ही उसका घाघरा निचे गिर पड़ा। मंजरी अब सिर्फ एक चड्डी जैसी पैंटी पहनी हुई थी। मंजरी को इसकी भनक लगे उसके पहले ही एक झटके में राकेश ने मंजरी की पैंटी को निचे की और खिंच लिया और मंजरी पूरी नंगी हो गयी। naukrani ki alhad jawani

बापरे! मैंने उससे पहले इतनी खूबसूरत कोई जवान नंगी लड़की नहीं देखि थी। (वैसे भी मैंने तब तक और कोई नंगी लड़की नहीं देखि थी। ) नंगी खड़ी हुई मंजरी कोई अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। क्या गजब के घुंघराले बालों के गुच्छे और कान पर और नाक पर फैली उसके बालों की लटें! क्या घनी और धनुष के अकार सामान उसकी भौंहें! ऑयहोय! कैसा गज़ब ढ़ा रही थीं उसकी लम्बी पलकें! क्या मदहोश उसकी आँखें!

क्या नशीले और कुदरती लाल होंठ जो कटाक्ष पूर्ण मुद्रा में दिख रहे थे! उसकी लम्बी और पतली गर्दन जो निचे से उसके हसीं कन्धों से जुडी हुई थी। क्या जवान कड़क और ग़ज़ब के खूबसूरत उसके मम्मों का आकार! कैसे फूली हुई करारी उस मम्मों पर उद्दंडता से खड़ी हुई निप्पलेँ! क्या ईमान ख़तम करने वाला उसके पेट, कमर और नितम्ब का घुमाव और क्या उसकी हल्केफुल्के बालों वाली उभरी हुई चूत! उसके नितम्ब और उसकी मदहोश करने वाली चूत से निचे उसकी उत्तेजना से थिरकती हुई सुआकार जांघें ऐसी लग रहीथीं जैसे एक बड़ी नदी में से पतली सी दो नदियाँ निकल रही हों! naukrani ki alhad jawani

उस नंगी मूरत को देख मेरा लण्ड भी खड़ा हो गया। और ऐसा खड़ा हो गया की मुझसे रहा ही नहीं जा रहा था।

जब मैं छुपा हुआ इतनी दूर खड़ा हुआ था और फिर भी मेरा यह हाल था; तो सोचो की उस क़ुदरत की अति सुन्दर नग्न मूरत को इतने करीब से देख रहे राकेश का हाल क्या हुआ होगा? वह तो कोई दक्ष कलाकार की तराशी हुई अद्भुत संगमरमर की उस नग्न मूरत समान खड़ी मंजरी को ठगा हुआ देखता ही रहा। उसका लंबा घंट के सामान लण्ड एकदम सावधान पोजीशन में अकड़ा हुआ खड़ा था जिसमें से उसका पूर्व रस रिसता ही जारहा था।

मंजरी ने उसका अक्कड़ खड़ा हुआ घंटा अपने हाथों में पकड़ा और उसे धीरे धीरे हिलाती हुई बोली, “अरे फक्कड़, क्या देख रहा है? मैं यहां एक औरत हो कर नंगी खड़ी हूँ और तू साला पहले तो बड़ी डिंग मारता था, की “तुझे चोदुँगा तुझे चोदुँगा” तो अब तुझे क्या साप सूंघ गया है? कुछ न करते हुए बस मुझे नंगी देखकर घूरता ही जा रहा है? घूरता ही जा रहा है? चल कपडे निकाल! तू भी नंगा होकर दिखा। साले मुझे भी तो तुझे नंगा देखना है। देखूं तो सही की कैसा लगता है मेरा मर्दानगी भरा छैला?” naukrani ki alhad jawani

राकेश जो मंजरी की नग्न अंगभँगिमा में खोगया था उस तंद्रा से वापस धरती पर आया। राकेश ने पाया की उसके सपनों की रानी जिसे सपनों में देखकर मूठ मारते मारते उसकी हालत खराब हो जाती थी, स्वयं वह तब उसके सामने नग्न खड़ी उसे चोदने का आह्वान कर रही थी।

उस सुबह की और उसके पहले की कई महीनों की उसकी मंजरी को फ़साने की मेहनत फलीभूत होती हुई नजर आ रही थी। उस नंगी खड़ी हुई औरत का हरेक अंग राकेश के सपनों में आयी हुई मंजरी के हर अंग से कितना मिलता था! राकेश तो जैसे नंगी खड़ी हुई मंजरी का दीवाना ही हो गया। तब उसे उस देवी को कैसे मैं खूब खुश करूँ? यही बात मन में आ रही थी।

अपने लण्ड की बेचैनी की और न ध्यान देते हुए राकेश जमीं पर घुटनों के बल आधा खड़ा हुआ और उसने बड़े प्यार से मंजरी को पलंग पर बिठाया और मंजरी के पैरों को चौड़े कर उनके बीचमें अपना सर घुसेड़ा। उसने देखा की मंजरी की चुदवाने की उत्तेजना उसकी चूत में से बूँदें बन कर टपक रही थीं। मंजरी की उत्तेजना से भरा उसका पूर्व रस उसकी चूत में से निकल कर उस की जाँघों पर पतली सी धारा बनकर बह रहा था।

राकेशको उसका आस्वादन करना था। राकेश ने अपनी जीभ लम्बाई और मंजरी की चूत की दरार में घुसादी। राकेश की जीभ जब मंजरी की संवेदनशील त्वचा को चाटने और कुरेदने लगी तो मंजरी मारे उत्तेजना से पगला सी गयी। एक अकल्पनीय सिहरन मंजरी के बदनमें दौड़ रही थी। उसकी चूत की अंदरूनी त्वचा ऐसे चटक रही थी जैसा मंजरी ने पहले कभी अनुभव नहीं किया था। naukrani ki alhad jawani

राकेश का सर अपने हाथों में पकड़ कर मंजरी राकेश के काले घने घुंघराले बालों को जैसे अपनी उँगलियों से कंघा करने लगी। मंजरी राकेश के बालों द्वारा राकेश का सर अपने हाथों में पकड़ कर जैसे अपनी चूत में और अंदर घुसेड़ रही थी और अपनी चूत को चटवाने की राकेश की प्रक्रिया पर अपने उत्तेजित बदन का हाल बयाँ कर रही थी। जैसे राकेश ने अपनी जीभ और ज्यादा घुसेड़ी और और फुर्ती से चाटना शुरू किया की मंजरी कांपने लगी और उत्तेजना के शिखर पर जैसे पहुँचने वाली ही थी। तब शायद राकेश थोड़ा सा थका सा लगा। उसने थोड़ा पीछे हट कर अपनी दो उंगलियां मंजरी की चूत में डाली।

जैसे ही राकेश की दो उंगलियां मंजरी की चूत की अंतर्त्वचा को स्पर्श करने लगी की मंजरी उछल पड़ी। शायद मंजरी की चूत से उसके पूर्व रस का प्रवाह ऐसा बहने लगा की मैंने देखा की राकेश ने उसमें से डूबी हुई उंगलियां को मुंह में रखकर उन्हें ऐसे चाटने लगा जैसे वह शहद हो।

जब मंजरी ने राकेश को उंगलियां चाटते देखा तो वह अनायास ही हँस पड़ी। उसे तब एहसास हुआ की राकेश उसे सिर्फ चोदने के लिए ही इच्छुक नहीं है, वह वास्तव मैं मंजरी को चाहता है। तब मंजरी ने राकेश के होंठ से अपने होंठ मिलाये और राकेश की बाँहों में समा गयी। अब उसे राकेश से चुदने में कोई भी आपत्ति नजर नहीं आ रही थी। बल्कि वह राकेश से चुदवाने के लिए बड़ी आतुर लग रही थी। naukrani ki alhad jawani

एक हाथ की दो उँगलियों से राकेश मंजरी को चोद रहा था तो उसका दुसरा हाथ मंजरी के स्तनों को जोर से पकडे हुए था। बार बार वह उन उन्मत्त स्तनों को कस कर भींचे जा रहा था। तो कभी वह झुक कर उनमें से एक स्तन को अपने मुंह में लेकर उन्हें चूसता था। जैसे जैसे राकेश की मंजरी को उँगलियों से चोदने की रफ़्तार बढ़ने लगी, वैसे वैसे मंजरी अपने कूल्हे उठाकर राकेश को और जोर से उंगली चोदन करने का आह्वान कर रही थी।

उन दोनों प्रेमियों की हालत देखकर मेरा बुरा हाल हो रहा था। पहले मैं जब भी मंजरी को देखता था तो मेरी नजर सबसे पहले उसकी चूचियों पर ही जाती थी। उसकी चोली के पीछे उसकी चूचियां इतनी मदमस्त लगती थीं की क्या बताऊँ? मुझे बचपन से ही लडकियां और बड़ी औरतों के मम्मे बहुत भाते थे। जब कोई औरत के भरे हुए स्तनों का उभार ऊपर से अगर नजर आ जाता था तो उन स्तनों का उभार देख कर ही मेरे लण्ड में से पानी झर ने लगता था। जैसे जैसे मैं बड़ा होने लगा तो यह पागल पन बढ़ता ही गया।

जब मैंने मंजरी के नंगे स्तन देखे तो मैं पागल सा हो गया। मेरा मन किया की मैं भी अंदर घुस जाऊं और मंजरी की चूचियों को चूसने लगूं और उसकी फूली हुई निप्पलों को काट कर लाल करदूँ। पर सब मुझे छोटा मानते थे। राकेश लगा हुआ था तो मेरा नंबर कहा लगने वाला था? खैर, मैं मन मारकर अपने लण्ड को हिलाता हुआ, जो अंदर चल रहा था वह अद्भूत दृश्य देखने में जुट गया।

राकेश के दोनों हाथ मंजरी को चरम सीमा रेखा पर पहुंचाने में ब्यस्त थे। मंजरी की आँखें बंद थीं और वह पूरी तरह से राकेश के एक हाथ से उंगली चोदन और दूसरे हाथ से अपने स्तनों को जोश से दबवाने का उन्माद भरा आनंद अपनी आखें बंद कर महसूस कर रही थी। मुझे लगा की उसके बदन में अचानक जैसे कोई भूत ने प्रवेश किया हो ऐसे मंजरी का बदन कांपने लगा। मैं अचम्भे में पड गया की यह मंजरी को क्या हो गया। naukrani ki alhad jawani

मंजरी के मुंहसे आह… आह… निकलने लगी। मंजरी जो कुछ समय पहले राकेश से भाग रही थी अब राकेश को चोदने के लिए बिनती कर रही थी। उस के मुंह से बार बार, “ओह… राकेश… आह… ओह… आह.. मुझे चोदो और.. और…” मंजरी का बदन इतने जोर से हिलने लगा की साथ साथ मेरा पूरा पलंग भी उसके साथ हिल रहा था। और फिर अचानक एक झटके में वह शांत हो गयी।

इतनी फुर्ती से मंजरी की टांगों के बिच में उसकी चूत में से अपने हाथ और उँगलियों को अंदर बाहर करते हुए राकेश भी थोड़ा सा थक गया था। थोड़ी देर के लिए दोनों शांत हो गए। मैंने देखा की मंजरी पलंग पर से थोड़ी उठी और उसने राकेश को उसकी बाहों में लेने के लिए अपनी बाहें उठायीं। राकेश खड़ा हुआ। उसका लंबा घंट जैसा लण्ड एकदम्म कड़क खड़ा हुआ था। वह अपना लण्ड एक हाथ से सेहला रहा था। मंजरी ने राकेश का लण्ड अपनी एक हथेली में पकड़ा और उसे हिलाती हुई वह पलंग पर ठीक तरह से लम्बी होती हुई लेट गयी और तब उसने राकेश को उसके ऊपर चढने के लिए इंगित किया।

राकेश मंजरी के लेटे हुए नंगे बदन को देखता ही रहा। मंजरी की हलके फुल्के बालों से छायी हुई उभरी हुई चूत उसके मोटे लण्ड को ललकार रही थी। राकेश ने लेटी हुई मंजरी की टांगों को अपनी टांगों के बिच में लेते हुए अपने घुटनों के बल दो हाथ और दो पाँव पर झुक कर मंजरी के नंगे बदन को निहार ने लगा। नग्न लेटी हुई मंजरी गज़ब लग रही थी। मंजरी ने अपने दोनों हाथों को लंबाते हुए राकेश का सर अपने हाथों में लिया और राकेश का मुंह अपने मुंह से चिपका कर उसके होंठ अपने होठों से चिपका दिए। naukrani ki alhad jawani

दोनों पागल प्रेमी एकदूसरे से चिपक गए और एक अत्यंत गहरे घनिष्ठ अन्तरङ्ग चुम्बन में लिप्त हो गए। राकेश का लण्ड तब दोनों के बदन के बिच मंजरी की जांघों के बिच था। वह मंजरी की गीली चूत पर जोर दे रहा था। उनका चुम्बन पता नहीं कितना लंबा चला। थोड़ी देर के बाद मंजरी ने राकेश का मुंह अपने मुंह से अलग किया। मुझे दोनों की गहरी साँसे कमरे के बाहर खड़े हुए भी सुनाई पड़ रही थी। इतना लंबा चुम्बन करने के समय दोनों की साँसे रुकी हुई थी सो अब धमनी की तरह ऑक्सीजन ले रही थी।

मंजरी ने राकेश की आँखों में आँखें मिलाई और थोड़ा सा मुस्कुरा कर बोली, ‘देख पगले! कुछ पाने के लिए मेहनत तो करनी पड़ती है। अब मुझे देखता ही रहेगा या फिर अपनी मर्दानगी का अनुभव मुझे भी कराएगा? मैं भी तो देखूं, तू कैसा मर्द है?”

मंजरी तो राकेश की मर्दानगी को भड़काए जा रही थी, पर अपना लौंडा भी कम नहीं था. उसके हर वार का जवाब था उसके पास.. पर इधर मेरी हालत ख़राब हो रही थी.. इस mast desi kahani का आखिरी भाग..

दोनों पागल प्रेमी एकदूसरे से चिपक गए और एक अत्यंत गहरे घनिष्ठ अन्तरङ्ग चुम्बन में लिप्त हो गए। राकेश का लण्ड तब दोनों के बदन के बिच मंजरी की जांघों के बिच था। वह मंजरी की गीली चूत पर जोर दे रहा था। उनका चुम्बन पता नहीं कितना लंबा चला। थोड़ी देर के बाद मंजरी ने राकेश का मुंह अपने मुंह से अलग किया। मुझे दोनों की गहरी साँसे कमरे के बाहर खड़े हुए भी सुनाई पड़ रही थी। इतना लंबा चुम्बन करने के समय दोनों की साँसे रुकी हुई थी सो अब धमनी की तरह ऑक्सीजन ले रही थी।

मंजरी ने राकेश की आँखों में आँखें मिलाई और थोड़ा सा मुस्कुरा कर बोली, ‘देख पगले! कुछ पाने के लिए मेहनत तो करनी पड़ती है। अब मुझे देखता ही रहेगा या फिर अपनी मर्दानगी का अनुभव मुझे भी कराएगा? मैं भी तो देखूं, तू कैसा मर्द है?”

राकेश चुप रहा। उसने फिर झुक कर मंजरी के लाल होठों पर अपने होंठ रख दिए और थोड़ा सा उठकर अपने घोड़े से लण्ड को ऊपर उठाया। मंजरी ने राकेश का लण्ड अपनी हथेली में लिया और उसे हलके से हिलाते हुए धीरे से अपनी चूत के केंद्र बिंदु पर रखा। फिर थोड़ा ऊपर सर करके मंजरी राकेश के कानों में बोली, “देख, अब तू तेरे यह मरद को धीरे धीरे ही घुसेड़ियो। तेरा लण्ड कोई छोटा नहीं है। मेरी बूर को फाड़ न दे।”

मंजरी फिर पहली बार राकेश से डरी, दबी हुई प्यार भरे लहजे में बोली, “देख यार, अच्छी तरह उसे गीला करके हलके हलके डालियो। ध्यान रखना अब मैं और मेरी यह चूत सिर्फ मेरी नहीं है। यह तेरी भी है। अब यह जनम जनम के लिए तेरी हो गयी। जब तू चाहे इसका मजा ले सकता है।”

राकेश मंजरी को देखता ही रहा। उसकी समझ में नहीं आरहा था की उस दिन तक जो मंजरी उसकी रातों की नींद हराम कर रही थी और जो मंजरी उससे भाग रही थी उस को अपने पास फटक ने नहीं दे रही थी वही मंजरी कैसे उससे इतने प्यार से भीगी बिल्ली की तरह अपनी टांगें उठाकर उसे बिनती कर रही थी और उससे चुदवाने के लिए उत्सुक हो रही थी।

राकेश को भी एहसास हुआ की अब वह कोई साधारण छैला नहीं रहा। अब उसकी सपनों की रानी उस दिन से तन और मन से उसकी हो गयी थी। अब उसे मंजरी के पीछे दौड़ने की जरुरत नहीं थी। वह जान गया की जवानी की जो आग उसके बदन में लगी हुई थी वही आग मंजरी के बदन में भी लगी हुई थी।

उस सुबह वह मंजरी के पीछे भागने वाला सड़क छाप रोमियो नहीं बल्कि मंजरी का प्रेमी बन गया था। मंजरी अब जनम जनम की उसकी संगिनी बनाना चाहती थी। राकेश भी तो यही चाहता था। पर शायद राकेश प्यार की जो शरारत भरी हरकतें मंजरी ने उसके साथ और उसने मंजरी के साथ तब तक की थीं उसकी उत्तेजना खोना भी नहीं चाहता था। naukrani ki alhad jawani

राकेश ने भी उसी प्यार भरे लहजे में कहा, “देख मेरी छम्मो। तुझे तो मेरी बनना ही है। मैं तुझे छोडूंगा नहीं। पर इसका मतलब यह नहीं है की हमारे बिच जो यह लुका छुपी कहो या पकड़म पकड़ी का खेल चलता आ रहा था वह ख़तम हो जाए। यह तो जारी रहना चाहिए। तुझे तेरे पीछे भागके पकड़ कर चोदने ने का जो मजा है वह मैं खोना नहीं चाहता।”

यह सुनकर मंजरी का अल्हडपन सुजागर हो गया। वह राकेश के नंगे पेट पर अपना अंगूठा मार कर बोली, “साले, एक तरफ मुझे चोदना चाहता है, और फिर कहता है की मैं भाग जाऊं और तू मुझे पकड़ ने आये? अरे साले तू मंजरी को नहीं जानता। मेरे पीछे भागने वाले बहुत हैं। तू मुझे क्या पकड़ता। यह तो मुझे तुझ पर तरस आ गया और मैं जानबूझ कर तुझसे पकड़ी गयी। अब चल जल्दी कर वरना मैं कहीं भाग निकली तो तू फिरसे हाथ मलता रह जाएगा।”

राकेश अपनी मुस्कान रोक न सका। उसे अच्छा लगा की उसकी मंजरी कोई साधारण औरत नहीं थी की वह किसी भी मर्द की चगुल में आसानी से फँसे। उसे यह भी यकीन हो गया की आगे की उसकी राह उतनी आसान नहीं रहने वाली की जब उसका जी चाहे तो मंजरी उससे चुदने के लिए अपने पाँव फैलाकर सो जायेगी। उसे वही मशक्कत करनी पड़ेगी जो उसने तब तक की थी।

राकेश ने कहा, “ठीक है मेरी रानी। अब ज़रा मैं तेरी जवानगी का और तु मेरी मर्दानगी का मजा तो लें! हाँ मैं तेरा जरूर ध्यान रखूंगा तू चिंता मत करियो। ”

ऐसा कह कर राकेश ने अपना कड़ा छड़ जैसा मोटा लण्ड मंजरी की फैली हुई टांगों के बिच में उसकी उभरी हुई चूत के होठोंको के केंद्र बिंदु पर धीरे से सटाया।

मंजरी ने अपनी उँगलियों से अपनी चूत के होठों को फैलाया और राकेश के फौलादी लण्ड को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर थोड़ी देर के लिए अपनी चूत पर रगड़ा ताकी दोनों का पुरजोर झर रहा पूर्व रस से राकेश का लण्ड और उसकी चूत पूरी तरह सराबोर हो जाए और मंजरी को राकेश के लण्ड के अंदर घुसनेसे ज्यादा पीड़ा न हो।

उसके बाद मंजरी ने अपना पेंडू को ऊपर की और धक्का देकर राकेश को यह संकेत दिया की वह उसका लण्ड अंदर घुसेड़ सकता है। राकेश ने जैसे ही अपना लण्ड मंजरी की चूत में थोड़ा सा घुसेड़ा की अनायास ही मंजरी के मुंह से निकल गया, “धीरे से साले यह मेरी चूत है। तेरे बाप का माल नहीं है।”

राकेश अपनी हंसी रोक न सका। उसने एक धक्का मारा और अपना लण्ड थोड़ा और घुसेड़ा। मंजरी अपनी आखें मूँदे राकेश के छड़ का उसकी चूत में घुसने का इंतजार कर रही थी। मुझे दोनों की यह प्रेमक्रीड़ा का पूरा आनंद लेना था। मेरा लण्ड भी एकदम कड़क और खड़ा हो गया था।

मैं दरवाजे करीब पहुँच गया और छुप कर दोनों को देखने लगा। मेरा पलंग दरवाजे के एकदम करीब ही था और मुझे दोनों प्रेमियों की हर हरकत साफ़ दिख रही थी और उनका वार्तालाप साफ़ सुनाई दे रहा था। मैं सोच रहा था की शायद वह दोनों मुझे देख नहीं रहे थे। पर मैंने एक बार देखा की मंजरी अपनी टांगें उठाकर राकेश के कन्धों पर रखे हुई थी और उसकी फैली हुई चूत मैं साफ़ देख रहा था तो उसने मुझे आँख मारी। मैं हतप्रभ रह गया। शायद मुझे मंजरी ने चोरी से छिप कर उन दोनों को देखते हुए पकड़ लिया था। naukrani ki alhad jawani

पर उसके बाद जब राकेश ने अपना लण्ड मंजरी की चूत में थोड़ा और घुसेड़ा तब मंजरी के मुंह से सिसकारी निकल ही गयी। उसे बोले बिना रहा नहीं गया, “साले कितना मोटा है तेरा लण्ड। मेरी चूत फाड़ देगा क्या? साले धीरे धीरे डाल।”

मंजरी की दहाड़ सुन कर मुझे हँसी आगयी। मैं अपने मन में सोच रहा था, “यह लड़की कमाल की है. चुदते हुए भी अपनी दादागिरी और अल्हड़पन से वह बाज नहीं आती। कोई और लड़की इसकी जगह होती तो चुप रहकर चुदने का मजा ले रही होती।”

राकेश ने उसका कोई जवाब न देते हुए एक हल्का धक्का और मारा की उसका आधा लण्ड मंजरी की चूत में घुस गया। मंजरी के मुंहसे आह.. निकल पड़ी पर वह और कुछ न बोली। राकेश ने फिर अपना लण्ड वापस खींचा और फिर एक धक्का और दिया। उस बार मंजरी ने अपनी आँखें जोर से भिंच दीं। शायद उसने सोचा जो होता है होने दो। राकेश ने जब एक आखिरी धक्का और दिया और तब उसका फैला हुआ मोटा लण्ड मंजरी की चूत में करीब करीब घुस ही गया तब मंजरी के मुंह से कई बार “आह… आह… आह…” निकल गयी पर उस “आह..” में दर्द कम और रोमांच ज्यादा लग रहा था।

जब राकेश ने मंजरी को चोदने ने की गति थोड़ी सी बढ़ाई तो मंजरी के मुंह से बार बार “आह… आह… उँह…” निकलने लगा। वह दर्द की पुकार नहीं बल्कि मंजरी को अपनी पहली चुदाइ का जो अद्भुत अनुभव हो रहा था उसका जैसे पुष्टिकरण था। शायद उसके मनमें यह भाव आरहा होगा की तब तक उसने राकेश को उकसाने की जेहमत की थी, वह इस चुदवाने के उन्मत्त अनुभव से सार्थक नजर आ रही थी। naukrani ki alhad jawani

एक लड़की जो पहली बार चुदने में अद्भुत अनुभव पाने की आशा रखती है, जब उसे चुदने के समय वैसा ही अनुभव होता है तो उसके मन का जो हाल हो रहा होगा वह मंजरी की यह “आह.. हम्फ … उँह…” से प्रतिपादित हो रहा था।

राकेश की शक्ल भी देखते ही बनती थी। वह आँखें मूंदे मंजरी की चिकनाहट भरी गीली चूत में अपना मोटा लण्ड पेले जा रहा था। वह भी मंजरी को चोदने का अद्भुत अनुभव का आनन्द ले रहा था। उसके हाथ मंजरी के दोनों पके हुए फल सामान गोलाकार स्तनों को कस के दबा रहे थे।

मंजरी के स्तनों को राकेश इतनी ताकत से पिचका रहा था जो उसकी उत्तेजना और आतंरिक उत्तेजित मनोदशा का प्रतिक था। मुझे लगा की कहीं राकेश के नाख़ून मंजरी के स्तनों को काट न दे। मंजरी के स्तन राकेश के दबाने से एकदम लाल दिख रहे थे। मंजरी के स्तनों की निप्पलं फूली हुई और राकेश की हथेली से बाहर निकलती साफ़ दिख रही थीं।

राकेश का पूरा फुला हुआ लण्ड मंजरी की चूत में ऐसे अंदर बाहर हो रहा था की देखते ही बनता था। दोनों के रस से लिपटा हुआ राकेश का लण्ड सुबह के प्रकाश में चमक रहा था। मंजरी की चूत दोनों के रस से भरी हुई थी। राकेश का लण्ड जैसे ही मंजरी की चूत में जाता तो एकदम उनका रस चूत में से बाहर निकल पड़ता।

मैं जहां खड़ा था वहाँ से मंजरी की चूत की ऊपर वाली गोरी पतली त्वचा जो लण्ड के बाहर निकलने पर बाहर की और खिंच आती थी और जब राकेश का लण्ड मंजरी की चूत में घुसता था तो वह पतली सी त्वचा की परत वापस मंजरी की चूत में राकेश के लण्ड के साथ साथ चली जाती थी। naukrani ki alhad jawani

मेरा कमरा उन दोनों की चुदाइ की “फच्च फच्च” आवाज से गूंज रहा था। दोनों की “उन्ह… आह… ओफ्….. हम्म… ” की आवाज “फच्च फच्च” की आवाज से मिलकर मेरे कमरे में एक अद्भुत ड्रम के संगीतमय आवाज जैसी सुनाई दे रही थी।

मैं अपने जीवन में पहली बार किसी की चुदाई का दृश्य देख रहा था। मुझे पता नहीं था की किसी औरत की चुदाइ देखना इतना उत्तेजक हो सकता है। राकेश और मंजरी दोनों के चेहरे के भाव अनोखे थे। राकेश उत्तेजना से भरा अपनी सहभोगिनि को कैसे ज्यादा से ज्यादा उन्माद भरे तरीके से चोद सके उस उधेड़बुन में था और साथ साथ स्वयं भी उसी उन्माद का अनुभव भी कर रहा था। जब की मंजरी पलंग पर लेटी हुई, राकेश के करारे लण्ड का उसकी चूत की गहराईयों में होते हुए प्रहार का आनंद अपनी आँखें मूँदे ले रही थी। उन दोनों में सो कौन ज्यादा उत्तेजित था यह कहना नामुमकिन था।

जैसे जैसे राकेश ने अपने लण्ड को मंजरी की चूत में पेलने की गति बढ़ाई वैसे ही मंजरी के मुंह से आह… आह… ओह… हूँ… आअह्ह्ह… इत्यादि आवाजें जोर से निकलने लगी। मंजरी को किसी भी तरह के दर्द का एहसास नहीं हो रहा था यह साफ़ लगता था।

राकेश के इतने मोटे लण्ड ने मंजरी की चूत को पूरा फैला दिया था और उसका लण्ड अब आसानी से मंजरी की चूत में भाँप चालक कोयले के इंजन में चलते पिस्टन की तरह अंदर बाहर हो रहा था। इतना ही नहीं, ऐसा लग रहा था जैसे मंजरी भी अपना पेडू उछाल उछाल कर राकेश के लण्ड को अपनी चूत के कोने कोने से वाकिफ कराना चाहती थी। naukrani ki alhad jawani

धीरे धीरे मंजरी की आह… की सिसकारियां बढ़ने लगीं। राकेश का लण्ड जैसे जैसे मंजरी की चूत की गहराईयों को भेदने लगा वैसे वैसे मंजरी की चीत्कारियाँ और बुलंद होती चली गयीं।

मंजरी जोर से राकेश को “हाय… ओफ्फ… ओह… ऊँह…” के साथ साथ “ऊँह…साले…”

तो कभी “ओह…क्या चोदता है।”

और फिर थोड़ी देर बाद फिरसे, ” ओफ्फ… गजब का चोदू निकला तू तो यार।”

” चोद, और जोर से चोद। आह…मजा आ गया।” की आवाजें और तेज होने लगी।

“ऊई माँ….. मर गयी रे….. यह मुझे क्या हो गया है….? अरे बापरे…. आह…. ऑय….. ” मंजरी की आवाजें सुनकर ऐसा लग रहा था की वह झड़ने वाली थी। उधर राकेश के माथे से पसीने की बूंदें बहनी शुरू हो गयी थी। राकेश ने भी अपनी आँखें मुंद ली थीं और वह बस अपने पेंडू को जोर से धक्का देकर अपना लण्ड फुर्ती से पेल रहा था और उसके ललाट पर बनी सिकुड़न से यह साफ़ लग रहा था की वह भी अपने चरम पर पहुँचने वाला था।

थोड़ी ही देर में राकेश भी, “आह….. मंजरी रे….. आह… ऑफ…. मैं झड़ रहा हूँ रे… अब रोका नहीं जा रहा….” ऐसी आवाज के साथ ऐसा लगा जैसे अपने वीर्य का एक बड़ा फव्वारा उसके लण्ड से पिचकारी सामान छूट पड़ा। उधर मंजरी भी, “हाय रे… मैं भी….. गयी काम से….. जाने दे… छोड़ साले… जो होगा देखा जाएगा…. ” कहते ही मंजरी एकदम थरथराती हुई बिस्तर पर मचलने लगी। उसके मुंह से हलकी सी सिसकारियां निकलने लगी। naukrani ki alhad jawani

राकेश ने अपना लण्ड मंजरी की चूत में ही रखते हुए अपना सर निचे झुका कर मंजरी के होठों पर अपने होंठ रख दिए और मंजरी को अपनी बाहों में लेकर वह उसे बेइंतेहा चूमने लगा।

ऐसा लग रहा था जैसे अपने प्रेम का महा सागर मंजरी की चूत में उंडेलकर राकेश मंजरी को अपने से अलग करना नहीं चाहता था। मंजरी भी अपनी गोरी गोरी नंगी टाँगें राकेश के कमर को लपेटे हुए उसके पुरे बदन को ऐसे चिपक रही थी जैसे एक बेल गोल घूमते हुए एक पेड से चिपक जाती है। दोनों पाँवको कस कर दबाने से राकेश का लण्ड मंजरी की चूत में और घुसता जा रहा था। मंजरी की कमर से निचे की और राकेश के लण्ड की मलाई बह रही थी और मेरी चद्दर को गीला कर रही थी।

दोनों झड़ चुके थे और अत्यंत उत्तेजना पूर्ण चुदाई करने से साफ़ थके हुए भी थे और गहरी साँसे ले रहे थे। राकेश का बदन गर्मी में परिश्रम के कारण पसीने तरबतर था। मंजरी राकेश को अपने से अलग नहिं करना चाहती थी।

अपनी नंगी टांगों के अंदर राकेश के धड़ को अपने अंदर और दबाते हुए मंजरी बोली, “साले, अब तूने जब अपनी मलाई मेरे अंदर ड़ाल ही दी है तो मैं तेरे बच्चे की माँ भी बन सकती हूँ। अब तो मैं तुझे नहीं छोडूंगी। पहले मैं तुझे पास फटकने नहीं देती थी। अब मैं तुझे दूर जाने नहीं दूंगीं। अब तो मैं तेरे बच्चे की माँ ही बनना चाहती हूँ। अगर आज नहीं बनी तो फिर सही। पर मैं अब तेरे बच्चे की ही माँ बनूँगी। तू क्या बोलता हे रे?” naukrani ki alhad jawani

राकेश मंजरी की कोरी गंवार भाषा सुनकर हंस पड़ा और बोला, “अरे यहां कौन तुझे छोड़ने वाला है, साली? अब तो मैं तुझे माँ बना कर ही छोडूंगा। साली तुझे मैं ब्याह के घर ले आऊंगा और रोज चोदुँगा और कभी नहीं छोडूंगा। अब मुझसे भागके दिखा साली। बड़ी भाग जाती थी पहले।”

मेरे से उन दोनों प्रेमियों की बाते सुनकर हंसी रोकी नहीं जा रही थी। राकेश और मंजरी ने मुझे देखा तो था ही। राकेश ने मुड़कर मेरी और देखा और बोला, “छोटे भैया, देखा न? बड़ी भगति थी छमियाँ मुझसे। अब कैसे फँस गयी साली? देखा न कैसे उछल उछल कर चुदवा रही थी साली? पहले से ही उसको मेरा लण्ड चाहिए था। पर मांगने की हिम्मत नहीं थी।”

मैं उन दोनों प्रेमियों के प्रेम के सामने नत मस्तक हो गया। गँवार, रूखी और तीखी जबान में भी वह एक दूसरे को कितना प्यार कर रहे थे। अचानक मैंने देखा की घर में चारो और पानी बह रहा था। जो पाइप राकेश ने टंकी में रखी थी उससे टंकी भर गयी थी और उसमें से पानी ऊपर से बहता हुआ पूरे घर में फ़ैल गया था। बल्कि मैं भी कुछ समय से पानी में ही खड़ा था। पर उन दो प्रेमियों की चुदाई देख कर कुछ भी ध्यान नहीं रहा था।

अचानक मैंने एक अद्भुत दृश्य देखा। राकेश और मंजरी की चुदाई का मंजरी की चूत से निकला हुआ राकेश के प्रेम रस की बूंदें टपक कर चारों और फैले हुए पानी में गिर और उसमें मिल कर एक नया ही रंग पैदा कर रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे राकेश की पाइप में से मंजरी की चूत की टंकी में भरा हुआ प्रेम रस अब पुरे घर में फ़ैल रहा था। naukrani ki alhad jawani

तब अचानक ही मुझे दरवाजे पर माँ की दस्तक और आवाज सुनाई दी। वहचिल्ला कर बोल रही थी, “अरे दरवाजा तो खोलो। ”

माँ कैसे जानती की मंजरी ने अपना दरवाजा तो खोल ही दिया था।

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