कुलसुम आंटी की गांड का हर कोई दीवाना था, वो जब भी मोहल्ले के बच्चों को पोलियो की दवा पिलाने आती तो सब लौंडों के दो तीन दिन तक मुठ मारने की यादें इकट्ठी हो जाती थीं। मैं भी कुलसुम आंटी की गांड का मुरीद था क्यूँकी मैंने चूत का स्वाद तो कई बार लिया था लेकिन गांड मारने का मौका अब तक किसी भाभी या दीदी ने नहीं दिया,
उस पर कुलसुम आंटी के चुचे भी इतने बड़े और रसीले थे की कोई भी उनका स्वाद लिए बिना नहीं रह पाता। कुलसुम आंटी हमारे मोहल्ले के पीछे वाली गली में आंगनवाडी चलती थीं और उनका एक एन जजी ओ भी था, उनके पति कुवैत में नौकरी करते थे और परिवार भी ठीक ठाक ही था। लेकिन उन्होंने बुरे समय में शुरू की इस आंगनवाडी को कभी बंद नहीं किया बल्कि उसकी आड़ में और काम भी शुरू कर दिए।
एक दिन कुलसुम आंटी की स्कूटी चलते चलते बंद हो गई तो उन्होंने खुद मुझे आवाज़ लगा कर कहा “पप्पी !! बेटा ये गाड़ी स्टार्ट नहीं हो रही” मैं तो आधी रोटी पर दाल ले कर दौड़ा पर वहां जाते ही पता चला की इस में तो पेट्रोल ही खत्म है।
आंटी ने मुझे चूतिया बनाया और अपनी आंगनवाडी तक गाड़ी घसीटवाई, वहां पहुँच कर गाडी मैंने अन्दर भी रखवाई आयर जब मैं थक गया तो कुलसुम आंटी मेरे लिए पानी का गिलास ले कर आई।
वो जब पानी लेने गई और जब गिलास रखने झुकी तो मेरी नज़र उनकी गांड और बड़े बड़े चूचों पर थी, हो भी सकता है की उन्होंने नोटिस कर लिया हो पर मैं खुद को श्याना समझ रहा था।
कुलसुम आंटी ने मुझे कहा “बेटा अब तू आ ही गया है तो ये हमारे कंप्यूटर को क्या हुआ वो भी देख ही ले” मैंने मन ही मन सोचा “साली इतने काम करवा रही है तो कुछ दे भी दे”। कुलसुम आंटी ने मुझे कंप्यूटर ठीक करने बिठाया और खुद किसी से फ़ोन पर बातें करने लगीं,
मैं बुरा सा मुंह बना कर कंप्यूटर से जूझ रहा था क्यूंकि एक तो वो बाबा आदम के ज़माने का कंप्यूटर था और दुसरे मेरा सारा ध्यान कुलसुम आंटी की मटके जैसी गांड और मतीरों जैसे चुचों पर थी।
मैं श्योर था की कुलसुम आंटी का ध्यान मेरी तरफ नहीं है सो मैंने हौले से अपने खड़े होते लंड को जीन्स में ही सीधा किया, कुलसुम आंटी ने कहा “हो गया बेटा” तो मैं घबरा गया और उनकी तरफ देखने लगा।
कुलसुम आंटी बोली “मैं कंप्यूटर की बात कर रही थी” मैंने बस हाँ में सर हिलाया तो बोली “सीधा मत बन मैंने तुझे मेरे चुचों और गांड को घूरते देख लिया और जो अभी अभी तू अपने नन्हे सैनिक को मसल रहा था ना वो भी देख लिया” मैंने हडबडा कर कहा “मसल नहीं रहा था बस सीधा कर रहा था,
वो जीन्स में अन कम्फ़र्टेबल हो जाता है न इसलिए”। मेरी ये बात सुन कर कुलसुम आंटी हंस पड़ी और बोली “इतना बड़ा भी हो गया की जीन्स में फंस रहा है, खैर अब तू पकड़ा तो गया ही है। तो बता तेरी ये बात तेरी माँ को बताऊँ या तेरे बाप को”।
मेरी तो घिग्घी बांध गई और मैंने फटाक से कुलसुम आंटी के पैर पकड़ लिए और गिडगिडाने लगा “आंटी मुझे माफ़ कर दो, वो तो मोहल्ले के लड़कों ने आपके चुचों और आपकी मटकती गांड की इतनी तारीफ़ कर दी तो मैं घूरे बिना रह नहीं पाया, और जैसे ही आपके चुचे इतने करीब से देखे तो बस ये खड़ा हो कर जीन्स में फंस गया”।
कुलसुम आंटी सुने जा रही थी और हँसे जा रही थी, मैं यहाँ चूतियों की तरह बस मुंह नीचे किए खड़ा था और माफियाँ मांग रहा था पर तभी कुलसुम आंटी ने मेरी ठोड़ी पकड़ कर ऊपर की और कहा “एक तू ही नहीं इस जिस्म के कई दीवाने हैं पर अब तो मैं ढलने लगी हूँ”।
मैंने कहा “सॉरी आंटी” तो कुलसुम आंटी ने कहा “चल तू भी क्या याद रखेगा की किस दिलदार से पाला पड़ा था, मेरे चुचे तेरे हवाले, और अगर खुश हुई तो ये गांड भी तेरी। वैसे भी तेरे अंकल तो जाने कब आएँगे”।
मैं अब भी डरा हुआ था क्यूंकि क्या पता अभी कह रही है और थोड़ी देर में मेरे माँ बाप को ना बुलवा ले, पर जैसे ही कुलसुम आंटी ने मेरा हाथ अपने चुचे पर रखा मेरा डर निकल गया और मुझे उन्हें चेक करने को कहा।
मैं कुलसुम आंटी के मतीरे जैसे बड़े बड़े चुचे सहला रहा था और वो मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी, मैंने उनकी निप्पल को छुआ तो बोली “तुझे आता तो सब कुछ है, चल अब तेरा इनाम ये है की तू इन्हें पी भी सकता है”।
ये कहकर कुलसुम आंटी ने अपना ब्लाउज और ब्रा खोल कर अपने चुचे आज़ाद कर दिए, वो मेरी सोच से काफी बड़े थे और उम्र के हिसाब से काफी हद तक ढलने भी लगे थे लेकिन मैंने उन पर अपनी जीभ का ऐसा भोकाल मचाया की कुलसुम आंटी बावली हो गई।
अपने दोनों हाथों से उनके सांवले चुचे मसलते हुए मैं उन्हें पिए जा रहा था, कभी निप्पलों पर चिकोटी काटता तो कभी पूरे का पूरा चुचा मुंह में लेने की कोशिश करता।
कुलसुम आंटी मस्त हो कर अपने चुचे चुसवा रही थी और एक हाथ से अपनी चूत मसल रही थी, मैंने उनका पेटीकोट उठा कर उनकी चूत को चूमा तो बोली।
ये भी दूंगी लेकिन आज तेरी इस मेहनत के बदले तुझे वही चीज़ मिलेगी जो तू चाहता है आयर फिर क्या था, कुलसुम आंटी ने पेटीकोट पूरा उठा कर मुझे अपनी भरी हुई मदमस्त गांड दिखलाई जिसका छेड़ बाद तो था लेकिन मेरे लंड के लिए नया था।
कुलसुम आंटी अपने आंगनबाड़ी के ऑफिस में ज़मीन पर ही घुटने रख कर बैठ गई और ऐसी झुकी की उनकी गांड का छेड़ ऊपर आ गया, मैंने उनकी गांड देखि उस पर जमकर चूमा और खींच खींच के दो तीन चांटे उनकी गांड पर मारे।
कुलसुम आंटी ने हाथ बढ़ाकर टेबल से अपना बैग लिया और उस में पड़ी कोल्ड क्रीम की छोटी सी डिब्बी मुझे दे कर इशारा किया, मैंने थोड़ा अपने लंड पर लगाया और बाकी का सारा का सारा क्रीम उनकी गांड के छेड़ के बाहर और अन्दर भी अपनी ऊँगली से पेल पेल कर लगा दिया।
मेरी ऊँगली कुलसुम आंटी की गांड में जाते ही वो चिहुँक उठी और बोली “अब बिना मुझे दिखाए अपना लंड पेल दे मेरी गांड में”, मैंने आनन् फानन में उनकी गांड पर अपना लंड टिका कर जोर का धक्का मारा और घप्प से मेरा लंड उनकी गांड में पैवस्त हो गया।
कुलसुम आंटी इतने जोर से चीखी “मरदूद दो लंड डाले हैं क्या एक साथ” मैंने हँसकर कहा “आंटी एक ही है” तो बोली “इतना बड़ा था तो पहले ही देख के लेती”।
मैं कुलसुम आंटी की गांड में लंड पेल कर दनादन धक्के पे धक्का पेल रहा था और कुलसुम आंटी गांड मटका मटका कर चीखे जा रही थी “उफ़ बेटा तूने तो मेरी गांड में कारखाना खोल दिया लगता है, ऊऊह्ह्ह हाय मार डाला” उनकी हर चीख मेरे लिए मोटिवेशन का काम कर रही थी और मेरे धक्के और तेज़ होते जा रहे थे।
अब तो मानो आंटी किसी घायल पंछी की तरह चीख रही थी क्यूंकि एक तो मेरा लंड मोटा और दुसरे मेरे धक्के तेज़ तो आंटी की गांड का गुडगाँव बनना तो निश्चित था ही। मेरे धक्कों की तेज़ी के साथ मेरा वक़्त भी पूरा होने जा रहा था लेकिन मैंने इसे और मजेदार करने के लिए अपनी गांड में एक पेन टेबल से उठाकर घुसा लिया जिस से मेरे अन्दर एक गज़ब की किंकी एनर्जी आ गई और आंटी की गांड पर मेरे लंड का कहर बढ़ गया।
हम दोनों पसीने पसीने हो रहे थे और आंटी की चीखें कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी, मैंने एक आखिरी झटका मारा और अपना पूरा वीर्य आंटी की गांड में भर दिया जो शायद उनकी घायल गांड के लिए गरमा गरम मलहम की तरह था क्यूंकि वीर्य से भरी उनकी गांड शांत पड़ी थी।
आंटी ज़मीन पर उलटी लेती जोर जोर से साँसें ले रही थी, और मैं भी थक कर आंटी पर ही लेट गया तो वो पलटी और मेरे होठों को चूमकर बोली “बेटा तू ही असल मर्द है जिस ने मेरी गांड को वही मज़ा दिलवाया है जो मुझे पहली बार गांड मरवाने में आया था”।
मैं खुश हो कर उनके होंठों को चूस रहा था और उनके चुचे मसल रहा था तो वो बोली “गांड तो तूने बहुत अच्छी मारी है अब मेरी चूत को भी चोद चोद के चौराहा बना दे”। इसके बाद मैंने उनकी चूत को उसी दिन तीन बार चोदा और हर हफ्ते में तीन चार बार उनकी चूत और गांड पर अपने लंड का जलवा ज़रूर दिखाता हूँ।